इंतज़ार , एक अल्पविराम...
एक ऐसी खामोशी
जो कानों में एक अदम्य शोर भर दे ,
एक ऐसा शोर जो पागलपन की ओर धकेले।
सुबह जागती हूँ , तो थकी हुई...
थकी .... इस इंतज़ार से ...
थकी , यह जानकर कि लोग
दौडे जा रहे हैं मंजिल कि ओर ....
पर मेरे पैर बंधे हुए हैं
और मैं छुडा भी नही सकती
बस करना मुझे उस क्षण का इंतज़ार
जब मुझे दौड़ना है ।
शायद यह दौड़ बहुत लम्बी है ...
और आधे रस्ते लोग थक जाएँगे...
और तब मेरा वक्त होगा ...
वो मेरी दौड़ होगी ...
तब तक...
बस इंतज़ार...
©Manashi Pathak